गुरु के बिना तो जीवन कुछ भी नहीं, कहते हैं बालक की सबसे पहली गुरु उसकी मां ही होती है, मां हमें जीवन देती है और सांसारिक मूल्यों से हमारा परिचय कराती है, इसी तरह हमें ज्ञान और भगवान की प्राप्ति का मार्ग केवल एक गुरु ही दिखाता है, प्राचीन काल में शिष्य जब आश्रम में जाकर शिक्षा ग्रहण करते थे, तो इसी दिन वे पूरी श्रद्धा के साथ अपने गुरु के लिए पूजा किया करते थे।
महाभारत रचियता महर्षि वेद व्यास का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा को लगभग 3000 ई. पूर्व हुआ था और इसी दिन व्यास जी ने अपने शिष्यो एवं मुनियो को सर्वप्रथम भागवतपुराण का ज्ञान भी दिया था, इसीलिये उनके जन्मदिन को गुरु पूर्णिमा के रुप में मनाया जाता है। और इस पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं। वेदव्यास जी के पांच शिष्यों ने पुष्पमंडप में एक उच्चस्थान पर व्यास जी को बैठाकर पुष्प माला अर्पित की, आरती की तथा अपने ग्रंथ अर्पित किए।
गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु में इसलिये मनाई जाती है, क्योंकि इन चार माह में न अधिक गर्मी और न अधिक सर्दी होती है। यह समय अध्ययन और अध्यापन के लिए सर्वश्रेष्ठ है। इस दिन से ऋतु परिवर्तन भी होता है. इसलिए इस दिन वायु की परीक्षा करके आने वाली फसलों का अनुमान भी किया जाता है। इस दिन शिष्य अपने गुरु की विशेष पूजा करके दक्षिणा, पुष्प, वस्त्र आदि भेंट करता है।